ऊंच-नीच वाली सोच से बाहर निकलें, जाति की जय-जयकार नहीं, जड़ता पर करें प्रहार


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 संपादक की कलम से

किसी भी देश की तरक्की में उस देश के नागरिकों का सबसे अहम रोल होता है। इसी तरह किसी भी समाज की तरक्की में सबसे बड़ी भूमिका उस समाज के लोगों की होती है। किसी समाज का स्वरूप कैसा है, उस समाज के लोग कैसे हैं, उनकी सोच कैसी है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस समाज की भावी पीढ़ी को अपनी सोच विकसित करने के लिए कैसा माहौल दिया जा रहा है। यह भी मायने रखता है कि एक इंसान कैसी सोच वालों के बीच पल और बढ़ रहा है? किसी भी समाज का युवा वर्ग जिस तरह के लोगों के साथ बड़ा होगा, उठे-बैठेगा, यकीनन उसके अंदर वैसी ही सोच और संस्कार भी विकसित होंगे। 


मसलन किसी बच्चे को अगर बचपन से ही जंगल में शिकार करना सिखाया जाए और उसका पूरा दिन इसी काम में गुजरे, वह बच्चा अपना ज्यादातर वक्त अन्य शिकारी बच्चों के साथ शिकार करते हुए बिताए, तो धीरे-धीरे उसकी यह सोच बन जाएगी कि शिकार करना ही इंसान का मुख्य कार्य है और इसी की सफलता या असफलता ही इंसान की हिम्मत और बहादुरी का पैमाना है। 


किसी बच्चे को कुछ बेहतरीन खिलाड़ियों के साथ छोड़ दिया जाए, तो वह भी एक अच्छा खिलाड़ी बन सकता है। किसी बच्चे को अगर एक अच्छे संगीतकार के पास छोड़ दिया जाए तो वह भी एक अच्छा संगीतकार बन सकता है। किसी बच्चे को अगर अच्छे सिंगर, डांसर, लेखक, साइंटिस्ट आदि के बीच छोड़ दिया जाए तो उसमें उनके जैसे गुण आने की संभावना बढ़ जाती है।

मसलन, कोई बच्चा अगर किसी माली के साथ अपना सारा दिन बाग-बगीचे में बिताए तो पेड़-पौधों और प्रकृति के विषय में उसकी जानकारी और समझ काफी बढ़ जाएगी। जैसे एक खेती-किसानी वाले परिवार में बच्चा शुरू से ही कृषि से संबंधित चीजें देखता और सुनता है तो कृषि के बारे में उसे अच्छा खासा ज्ञान हो जाता है।


ठीक इसी तरह अगर किसी युवक को ऐसे लोगों के बीच छोड़ दिया जाए, जिनके बीच में जातीय श्रेष्ठता, जातीय गर्व, उच्च कुल और गोत्र की बातें होती हों, किसी जाति को ऊंचा और किसी को नीचा मानने, समझने की बात होती हो, तो जाहिर है कि उस युवक के मन में भी ऐसी बातें घर कर जाएंगी, फिर वो भी ऐसी सोच बना लेगा कि अमुक जाति का व्यक्ति उससे नीचा है और फलां जाति उसकी जाति के मुकाबले नीची है, छोटी है। 


जातीय श्रेष्ठता और ऊंच-नीच, भेदभाव वाली यह सोच अगर बचपन में किसी के दिमाग में घर कर जाए तो उससे निकल पाना बहुत मुश्किल होता है। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं हमारे बड़े बुजुर्ग, जिनके लिए जाति ही सब कुछ है, ऐसे लोग जाति के नाम पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. ऐसे लोग जातीय श्रेष्ठता या जातीय गर्व के नाम पर किसी जान भी ले सकते हैं।

हॉरर किलिंग के तमाम उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां किसी लड़के-लड़की या फिर नवविवाहित दंपति को सिर्फ इसलिए क़त्ल कर दिया जाता है कि उन्होंने अपनी जाति से बाहर जाकर शादी करने की हिमाकत की थी। जाति उनके लिए इतनी अहम है कि उसके सामने जिंदगी की भी कोई कीमत नहीं है।


इसलिए जागिए, कहीं ऐसा तो नहीं कि जाति का ये जहर आपके बाद अब आपके बच्चों में भी इंजेक्ट हो रहा है। आपसे नहीं तो किसी रिश्तेदार से, या फिर किसी दोस्त के जरिये भी आपके बच्चे की सोच में जातिवाद का जहर घुल सकता है। अपने बच्चों के फ्रेंड सर्किल पर नजर रखिए, उनकी सोच को परखिए, अपनी आने वाली पीढ़ी को अच्छी सोच दीजिए, उन्हें सामाजिक समता का पाठ पढ़ाइये, उनके दिलो-दिमाग में जातीय ऊंच-नीच और भेदभाव का जहर मत घोलिए। जातीय ऊंच-नीच वाली सोच लेकर कोई भी इंसान देश का बेहतर नागिरक नहीं बन सकता। जिसे गर्व के नाम पर अपने परिवारवालों, रिश्तेदारों और दोस्तों से जाति का जहर मिला है, वो बड़ा होकर अन्य लोगों को भी यही जहर बांटेगा, इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।


आपको यह समझना होगा कि जाति कभी गर्व का विषय नहीं हो सकती। गर्व उस पर किया जाता है, जिसे आपने अपनी मेहनत और काबिलियत से हासिल किया हो, जाति को आपने हासिल नहीं किया, बल्कि वो तो जन्म के साथ ही आपके साथ चिपक गई है। जिस परिवार में आपने जन्म लिया उसकी जाति आपकी हो गई। इसमें आपका कोई योगदान नहीं है, इसलिए जिस जाति को पाने में आपकी कोई भूमिका ही नहीं है, उसमें गर्व किस बात का? 

गर्व करना है तो अपनी पढ़ाई पर करिए, अपने बच्चों को अच्छी सोच और विचार दीजिए, फिर उस पर गर्व करिए, अपनी मेहनत से कोई बिजनेस खड़ा किया है तो उस पर गर्व करिये। अगर आपके अंदर कोई खास हुनर है तो उस पर गर्व करिये। कभी किसी जरूरतमंद के काम आ सकें हैं, उसकी मदद कर सके हैं तो उस पर गर्व करिए, अपने समाज को आगे बढ़ाने के लिए कोई रचनात्मक काम कर रहे हैं तो उस पर गर्व करिए, कभी बिना किसी स्वार्थ के कोई अच्छा काम किया है तो उस पर गर्व करिए, ईमानादारी से अपनी नौकरी करने, ड्यूटी निभाने पर गर्व करिए, अपने काम पर गर्व करिए। अगर आपने अपने बच्चों को अच्छी सोच, अच्छे संस्कार दिए हैं तो उस पर गर्व करिए। 


जाति पर गर्व करना ठीक उसी तरह है, जैसे कोई अपने गोरे रंग पर गर्व करे, कोई अपनी लंबाई पर गर्व करे, कोई स्त्री अपने सुंदर नयन-नक्श पर गर्व करे और कोई अपने काले-घने लंबे बालों पर गर्व करे। याद रखिए यह सब चीजें आपको जन्म के साथ मिली हैं, बिना मांगे, बिना कोई कोशिश किए मिली हैं। इसलिए कोई भी समझदार और अच्छी सोच वाला व्यक्ति इन सब चीजों पर गर्व नहीं कर सकता, जो इन सब चीजों को गर्व की वजह मानता है। वो असलियत में अपनी जाहिलियत का ही प्रदर्शन करता है। 


गर्व उस पर होना चाहिए जो कि जन्म के बाद आपने अपनी मेहनत, काबिलयत और हुनर से हासिल किया हो। इसलिए खुद को इस लायक बनाइये कि आप खुद ही नहीं, बल्कि दूसरे भी आप पर गर्व कर सकें, जाति पर गर्व करके ना सिर्फ आप अपनी छोटी सोच का प्रदर्शन करते हैं, बल्कि ये भी दिखा देते हैं कि सोच और समझ के स्तर पर आप कितने आधारहीन और खोखले हैं। इसलिए जातीय संगठन मत बनाइये, बल्कि ऐसे समाजिक और शैक्षिक संगठन बनाइये जो इंसान की सोच और समझ को परिष्कृत करें, जिससे एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके और जातीय श्रेष्ठता का भाव लेकर घूमने वालों को वो आईना दिखाया जा सके, जिसमें वो अपना बदसूरत चेहरा देखकर स्याह हक़ीकत से रूबरू हो सकें। तो फिर देर किस बात की। जातीय गर्व की झूठी भावना से बाहर निकलिए और देश का एक आदर्श नागरिक बनने की दिशा में आगे बढ़िए।