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जातियों के बीच ऊंच नीच और श्रेष्ठता की सोच हमेशा के लिए स्थापित हो गई है। |
✍️संपादक की कलम से
यूं तो जातिवाद खत्म करने की बात सभी करते हैं। दूसरों के सामने खुद को पढ़ा लिखा और समझदार दिखाने के लिए हर कोई कह देता है कि जातिवाद खत्म होना चाहिए, बल्कि कई लोग तो इससे भी दो कदम आगे बढ़कर ये भी दावा कर देते हैं कि जातिवाद तो कब का खत्म हो चुका है, अब समाज में ऊंच-नीच जैसी कोई भावना नहीं है। लेकिन सच्चाई क्या है वो हम और आप अच्छे से जानते हैं।
सच ये है कि जातिवाद भारतीय समाज के रगों में बहता है। इसलिए इसे खत्म कर पाना मुश्किल ही नहीं, करीब-करीब नामुमकिन है। अब तो लोगों ने इसी जाति के साथ ही जीने की आदत डाल ली है, बल्कि उन्हें दिल को बहलाने के लिए एक बहाना भी मिल गया है कि हम अमुक जाति से भले ही नीचे हैं, लेकिन फलानी जाति से ऊपर हैं। इस तरह जातियों के बीच यह ऊंच नीच और श्रेष्ठता की सोच हमेशा के लिए स्थापित हो गई है।
यह तो आप जानते ही हैं कि हिंदू धर्म में लोगों को चार वर्ण में बांटा गया है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र...बस इसी बंटवारे में लोगों ने खुद को दूसरे ऊंचा समझकर खुश रहने का जरिया ढूंढ लिया है...
ब्राह्मण सोचता है कि वो ठाकुर से ऊंचा है
ठाकुर सोचता है कि वो बनिया से ऊंचा है
बनिया सोचता है कि वो जाट से ऊंचा है
जाट सोचता है कि वो गुर्जर से ऊंचा है
गुर्जर सोचता है कि वो कुर्मी से ऊंचा है
कुर्मी सोचता है कि वो यादव से ऊंचा है
यादव सोचता है कि वो कुम्हार से ऊंचा है
कुम्हार सोचता है कि वो कोइरी से ऊंचा है
कोइरी सोचता है कि वो केवट से ऊंचा है
केवट सोचता है कि वो कोरी से ऊंचा है
कोरी सोचता है कि वो धोबी से ऊंचा है
धोबी सोचता है कि वो चमार से ऊंचा है
चमार सोचता है कि वो पासी से ऊंचा है
पासी सोचता है कि वो बाल्मीकि से ऊंचा है
बाल्मीकि सोचता है कि वो मुसहर से ऊंचा है।
इस तरह जातिगत ऊंच-नीच की ये चेन लगातार चलती रहती है। जब तक हिंदू धर्म है, तब तक जाति की ये चेन भी चलती रहेगी, क्योंकि जातियां हिंदू धर्म का अहम हिस्सा हैं और इनके बिना हिंदू धर्म का कोई अस्तित्व नहीं है। इसलिए हिंदू धर्म में पैदा हुए व्यक्ति के सामने सिर्फ दो ही रास्ते हैं, या तो वह अपना धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपना ले, या फिर किसी और जाति से अपनी तुलना करके खुद को ऊंचा समझने और खुश रहने का बहना ढूंढ ले।