1857 की नायिका वीरांगना झलकारी बाई से अब तक आपने क्या सीखा?


संपादक की कलम से

वीरांगना झलकारी बाई, देश की शान हैं, कोरी-कोली समाज का अभिमान हैं। हर साल वीरांगना झलकारी बाई का जन्मदिन मनाना और उनकी तस्वीर पर फूल चढ़ाना बेशक जरूरी है, लेकिन इस सबसे ज्यादा जरूरी है, उस संदेश को आत्मसात करना जो हमें वीरांगना झलकारी बाई की जिंदगी से मिलता है।


वीरांगना झलकारी बाई का व्यक्तिव और कृतित्व हमें यह सिखाता है कि आपको जो भी काम करने का अवसर मिले उसे इतने बेहतरीन तरीके से अंजाम दें, कि वो पूरे देश और समाज के लिए मिसाल बन जाए। जैसे झलकारी बाई को एक आम सैनिक की तरह रानी लक्ष्मीबाई की सेना में लड़ने का मौका मिला, लेकिन उन्होंने अपनी हिम्मत और वीरता की ऐसी मिसाल पेश कर दी कि हर कोई उनकी जांबाजी और वफादारी का मुरीद हो गया।


यही वजह है कि इतिहास में जब भी रानी लक्ष्मी बाई की बात होती है तो साथ में झलकारी बाई का जिक्र भी जरूर होता है। ये अलग बात है कि जातिगत दुर्भावना की वजह से वीरांगना झलकारी बाई को इतिहास में उतनी जगह नहीं मिल सकी, जितनी मिलनी चाहिए थी। 


बहरहाल, हमारा फोकस इस विषय पर है कि वीरांगना झलकारी के व्यक्तित्व से कोरी-कोली समाज कुछ खास क्यों नहीं सीख पाया? झलकारी क्या थीं, रानी लक्ष्मीबाई की सेना में एक मामूली सैनिक ! लेकिन उस मामूली सैनिक को आज हर कोई जानता है, मानता है और गर्व करता है। मामूली सैनिक होकर भी झलकारी ने वीरता का ऐसा उदाहरण पेश किया कि वो बहादुरी की मिसाल बन गईं, इतिहास में अमर हो गईं। आज की तारीख में झलकारी बाई को तमाम महिलाओं का प्रेरणास्रोत कहा जा सकता है। 


अब सवाल ये है कि कोरी-कोली समाज ने वीरांगना झलकारी से क्या सीखा? वीरांगना झलकारी की वीरता का बखान करके उन पर गर्व करना, उन्हें अपने समाज, अपनी जाति की बताकर सम्मान और पुरस्कार बांटना एक सामान्य सी बात है, लेकिन उनके व्यक्तित्व और वीरता को आत्मसात कर समाज के लिए उदाहरण बनना बिल्कुल दूसरी बात है। कोरी-कोली समाज ने अब तक झलकारी बाई की वीरता का बखान कर उन पर गर्व तो खूब किया है, लेकिन उनसे सीखा क्या है, इस सवाल का जवाब तलाशने निकलें तो मायूसी ही हाथ लगती है। 


झलकारी बाई का जन्मदिन मना लेना और उनकी जयंती पर सम्मेलन और प्रोग्राम्स करना तो ठीक है, लेकिन इन सबसे ज्यादा जरूरी है उनसे सीख लेकर सही दिशा में आगे बढ़ना। एक छोटा सा काम करके भी बड़ा लक्ष्य हासिल करना। जिसे देखकर दुनिया आपकी मुरीद हो जाए, हर कोई तारीफ करने पर मजबूर हो जाए।


वीरांगना झलकारी ने साबित किया कि इंसान को जो भी काम मिले उसे बेहतर तरीके से पूरा करके बड़ा उदाहरण पेश किया जा सकता है। आज के समय में, खासकर हिंदी भाषी प्रदेशों पर गौर करके देंखें तो कोरी-कोली समाज के हर दूसरे घर में आपको एक न एक सरकारी नौकरी वाला टीचर जरूर मिल जाएगा। इनमें प्राइमरी टीचर्स की संख्या सबसे ज्यादा मिलेगी। उसके बाद इंटर कॉलेज के टीचर भी बड़ी तादाद में मिलेंगे। यूनिवर्सिटी और कॉलेज के प्रोफेसर कम ही मिलेंगे। 


सवाल ये है कि अपनी टीचिंग की वजह से ही सही, क्या कोई बड़ा उदाहरण पेश कर पाया है। जवाब है नहीं। जबकि हमारे देश में तमाम ऐसे शिक्षक हैं, जिन्होंने प्राइमरी स्कूल में पढ़ाते हुए भी अपने अलग अंदाज, डेडिकेशन, तकनीक और क्षमता से खुद को साबित किया है और पूरा देश उन्हें इस विशेषता की वजह से जानता है। सोशल मीडिया पर भी कई टीचर अपने पढ़ाने के अनोखे तरीके और डेडिकेशन को लेकर चर्चित हो चुके हैं। 


बिहार की एक महिला टीचर रूबी कुमार का मैथ पढ़ाने का अंदाज देखकर तो लाखों लोग उनके फैन हो गए। रूबी बिहार के बांका जिले के बौंसी ब्लॉक के एक स्कूल सहायक शिक्षिका हैं। लेकिन उनके पढ़ाने के विशेष तरीके की वजह से आज सारा देश उन्हें जानता है, पहचानता है। 


यहां तक कि महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप के चेयरपर्सन आनंद महिंद्रा और बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख खान भी इनके फैन हैं। आनंद महिंद्रा ने ट्विटर पर रूबी कुमारी के वीडियो को शेयर करते हुए लिखा था- "काश ये मेरी गणित की टीचर होतीं. तब मैं शायद इस सब्जेक्ट में बहुत बेहतर होता। शाहरुख खान ने महिंद्रा के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा कि "आपको नहीं बता सकता कि मेरे जीवन की कितनी परेशानियों का हल मैथ के इस साधारण से तरीके ने निकाला है. इस तरीके को टीचिंग मेथड में शामिल किया जाना चाहिए।"

 

कहने को तो रूबी कुमारी भी एक साधारण से सरकारी स्कूल की साधारण सी टीचर हैं, लेकिन उन्होंने अपने काम इतने समर्पण, ईमानदारी और इनोवेटिव तरीके से किया कि वो दुनियाभर में मशहूर हो गईं। ऐसे तमाम उदाहरण है जिनमें एक छोटे से काम को बेहतर और समर्पित तरीके से अंजाम देकर एक मामूली से व्यक्ति ने खुद को गैरमामूली साबित कर दिया।


वीरांगना झलकारी की कहानी में एक संदेश बेटियों के पिताओं के लिए भी छिपा है। अगर झलकारी के पिता ने तमाम पैरेंट्स की तरह लड़कों की तुलना में लड़की को कमतर समझ लिया होता और अपनी बेटी को घुड़सवारी और युद्ध कौशल की ट्रेनिंग नहीं दिलाई होती, तो दुनिया उसके साहस से  कभी रूबरू नहीं हो पाती। 


एक संदेश शादीशुदा पुरुषों के लिए भी छिपा है। अगर झलकारी के पति पूरन ने शादी के बाद पत्नी को आम महिलाओं की तरह ही सिर्फ चूल्हे-चौके तक सीमित कर दिया होता, तो वह युद्ध के मैदान पर अपना रणकौशल और वीरता कभी नहीं दिखा पाती। 


इसलिए अवसर मिलना और अवसर दिया जाना सबसे जरूरी है। चाहे वो लड़का हो या लड़की। जब किसी को मौका ही नहीं मिलेगा तो वह भला दुनिया को कैसे दिखा पाएगा कि उसके अंदर किस तरह की प्रतिभा छिपी हुई है। आत्मविश्लेषण करके देखें तो अपने देश में तकरीबन हर मां-बाप की इच्छा होती है कि उनके घर लड़का ही पैदा हो।   जब हर घर में लड़का ही पैदा होगा तो झलकारी जैसी वीरांगनाएं कहां से आएंगी?

 

कोरी-कोली समाज से भी कई बड़े अफसर हैं, डॉक्टर-इंजीनियर, आईएएस और आईपीएस अफसर हैं, लेकिन क्या आप किसी भी ऐसे डॉक्टर-इंजीनियर या अफसर को जानते हैं, जो अपने कामकाज या किसी अन्य विशेषता की वजह से प्रसिद्धि हासिल कर पाया हो? नहीं ना? ऐसा इसलिए है क्योंकि कोरी-कोली समाज के इन लोगों ने वीरांगना झलकारी से कुछ नहीं सीखा। समाज का कोई शिक्षक हो या अफसर उनका योगदान सिर्फ नौकरी करने और हर महीने सैलरी उठाने तक ही सीमित है। काम के दौरान कहीं कोई प्रयोग नहीं, डेडिकेशन नहीं, कोई स्पेशलाइजेशन नहीं, जुनून नहीं। कुछ अलग हटकर करने की जिजीविषा नहीं दिखती है। बस सरकारी नौकरी मिल जाए और हर महीने अकाउंट में सैलरी आती रहे। उसी नौकरी की बदौलत बढ़िया सी शादी हो जाए, लड़का है तो बढ़िया दहेज मिल जाए, लड़की है तो कमाऊ और मोटी सैलरी वाला लड़का मिल जाए। बस इसी को समाज के ज्यादातर लोगों ने तरक्की का पैमाना समझ लिया है। 


इस रवैये को बदलना होगा। हर इंसान खास है और हर इंसान ने अपने अंदर कोई न कोई विेशेष प्रतिभा छिपा रखी है। बस जरूरी है उसके बाहर आने की और उसे दुनिया से रूबरू कराने की। झलकारी बाई से बस इतना सीख लें कि जो भी काम करने का अवसर मिला है, चाहे वो छोटा हो या बड़ा, उसे इतने बेहतरीन तरीके से पूरा करें कि वो मिसाल बन जाए और हर कोई पूछे कि इसे किसने किया है। उम्मीद है आप हमारी बात समझ सकेंगे। आपकी प्रतिक्रियाओं, सुझावों और आलोचनाओं का तहेदिल से स्वागत है।